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ऋध॒द्यस्ते॑ सु॒दान॑वे धि॒या मर्तः॑ श॒शम॑ते। ऊ॒ती ष बृ॑ह॒तो दि॒वो द्वि॒षो अंहो॒ न त॑रति ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛdhad yas te sudānave dhiyā martaḥ śaśamate | ūtī ṣa bṛhato divo dviṣo aṁho na tarati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऋध॑त्। यः। ते॒। सु॒ऽदान॑वे। धि॒या। मर्तः॑। श॒शम॑ते। ऊ॒ती। सः। बृ॒ह॒तः। दि॒वः। द्वि॒षः। अंहः॑। न। त॒र॒ति॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:2» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:5» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:6» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (यः) जो (मर्त्तः) मनुष्य (धिया) बुद्धि से (सुदानवे) उत्तम दान करनेवाले (ते) आपके लिये (ऋधत्) उत्तम प्रकार ऋद्धि करे तथा (शशमते) शान्त हो (सः) वह (ऊती) रक्षण आदि कर्म्म से (बृहतः) बड़े (दिवः) कामना करते हुओं के (द्विषः) शत्रु का (अंहः) अपराध (न) जैसे वैसे (तरति) पार होता है ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धर्मात्मा जनों के लिये सुख देनेवाले होवें, वे जैसे धार्मिक जन पाप का नाश करते हैं, वैसे ही शत्रुओं का उल्लङ्घन करते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यो मर्त्तो धिया सुदानवे त ऋधच्छशमते स ऊती बृहतो दिवो द्विषोंऽहो न तरति ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ऋधत्) ऋध्नुयात् समर्द्धयेत् (यः) (ते) तुभ्यम् (सुदानवे) उत्तमदानकर्त्रे (धिया) प्रज्ञया (मर्त्तः) मनुष्यः (शशमते) शाम्येत् (ऊती) ऊत्या रक्षादिकर्म्मणा (सः) (बृहतः) (दिवः) कामयमानान् (द्विषः) शत्रोः (अंहः) अपराधः (न) इव (तरति) ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धर्म्मात्मभ्यः सुखप्रदाः स्युस्ते यथा धार्मिकाः पापं त्यजन्ति तथैव शत्रूनुल्लङ्घयन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे धार्मिक लोक पापाचा नाश करतात तसे जी माणसे धार्मिक लोकांना सुख देतात ती शत्रूंचे उल्लंघन करतात. ॥ ४ ॥